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Thursday, March 19, 2009

मुस्लिम मतदाता क्या सोचते है?


लोकसभा के चुनाव के आते ही मुस्लिम वोट्स की चर्चा होना आम बात है जैसा कि हम इससे पहले की पोस्ट में पढ़ चुके हैं कि मुस्लिम मतदाता राजनितिक दलों के लिए भेंड सामान हैं, वह सौ प्रतिशत सही है| कुछ सवाल और भी है जो सबके ज़ेहन में ज़रूर आते होंगे जैसे- "भारतीय मुस्लिम क्या सोचते है? कौन कौन से मुद्दे हैं जिनपर मुस्लिम मतदाता राजनितिक पार्टीज़ को वोट देंगे? क्या उनके मुद्दे वही होंगे जो बाकी दूसरे भारतीयों के होंगे या फिर उनके कुछ मख़सूस मुद्दे भी है? आदि"  

भारत में पिछले एक साल में राजनैतिक, सुरक्षा और सामाजिक स्थिति बहुत ज्यादा बदल गयी है, जिसके आधार पर कुछ कहना मुश्किल है, पिछले अनुमान पर कायम रहना भ्रम सा होगा | भारत में इस बीते साल में जो कुछ हुआ, उसकी वजह से हिन्दू और मुस्लिम के बीच टेंशन भी है | जो कुछ थोडी बहुत बची है वह वरुण गाँधी और अन्य साम्प्रदायिक नेता पूरी करे दे रहे है | 

सबसे ताज़ी बानगी तो नवम्बर 2008 में मुंबई में हुए हमले से बनती है जो कि पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैबा द्वारा प्रायोजित था | यह तो हमारा भाग्य ही था या हमारे देशवासियों की जागरूकता भरी सूझ बूझ कि किसी हिन्दू-मुस्लिम दंगे की कोई खबर ना ही मुंबई से या देश के किसी अन्य स्थान से आयी| वैसे मुंबई में जो हुआ उसका सीधा मक़सद था दोनों को आपस में लड़वाना | 

लेकिन सब कुछ ठीक रहा यह भी नहीं कहा जा सकता | जामिया नगर में मुस्लिम युवाओं का उत्पीड़न और पुलिस द्वारा मुठभेंड जो कि शक के दायरे में आ गयी थी और फ़र्जी थी | राजनितिक दबाव के चलते बेगुनाह मुस्लिम युवाओं को मार डाला गया | इसके अलावा उत्तर भारत में शांति से रह रहे आजमगढ़ के निवासियों को प्रताडित करने से एक गुस्से और शिकायत की एक लहर मुस्लिम समाज में आ गयी थी | यह भी मुस्लिम समाज के बहुत शोक्ड सदमा है कि गुजरात के 2002 के पीडितों की समस्या जस की तस् है |  

भारत के लगभग सभी शहरों में अभी भी सुरक्षा की दृष्टि से उठाये गए सवालों की वजह से मुस्लिम की हालत भी ध्यान आकर्षित करती है | ज्यादातर शहरों में मुस्लिम को यह विश्वाश नहीं है, किसी भी तरह से विश्वाश नहीं है कि पुलिस उनसे सभ्य सुलूक करेगी |

मैं आपको एक सच्ची घटना बताता हूँ- मेरे एक दोस्त ने जो कि मुस्लिम था, पासपोर्ट कार्यालय से अपने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था, उसका पासपोर्ट बन भी गया और डाकिया उसे डिलीवर करने उसके घर गया| पासपोर्ट देते समय उसने मेरे दोस्त से कहा- भैया ! बहरवा जाईके बम वम मत फोड़ दीहs , नाहीं तs हमर नौकरी चल जाई !" अब आप ही बताईये समाज में जो लहर है वह क्या सही है | 

दूसरा मुद्दा जो मुसलमानों के लिए अहम् है वह है कि सरकार या किसी भी राजनैतिक पार्टी का सच्चर कमिटी की सिफारिशों को लागू करने में नाकाम रहना | सच्चर कमिटी की रिपोर्ट में भारत के मुसलमानों के हालत और उसके समाधान का पूरा इंतेज़ाम है | आज से दो साल पहले यह रिपोर्ट आयी थी और उसे आधे अधूरे मन से और निचले स्तर पर HR मंत्रालय पर काम हुआ लेकिन उसके बाद कोई भी एक्शन अभी तक नहीं लिया गया | यहाँ तक की सरकार इसे पार्लियामेंट में बहस के लिए भी नहीं ले गयी ना ही इसमें कुछ काम किया | 

ऊपर दिए गए मुद्दे क्या कम थे जो कुछ राजनैतिक पार्टियाँ भारत-अमेरिकी परमाणु करार को भी मुस्लिम मुद्दे से जोड़ने जैसा घृणित कार्य कर बैठीं | बेहद दुखद था कि उन्होंने इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया था| इसी तरह के बेवजह के मुद्दों से कुछ कथित सेकुलर राजनैतिक पार्टियों अपने स्वार्थ और फायदे के लिए लगातार मुस्लिम वोट बटोरती आ रही हैं | 
 
ज्यादातर चुनाव में पार्टियाँ यह कोशिश करती है कि वह बड़े से बड़े पैमाने पर मुस्लिम्स' वोट्स बटोर लें और उसके लिए वह तरह तरह के हथकंडे अपनाती हैं और मुसलमानों की भावनाओं को टटोल कर अपने चुनावी वादे करती है जैसे- उर्दू को दूसरी भाषा बनाना, जुमे की नमाज़ को अटैंड करने के लिए स्कूल में आधे दिन की छुट्टी का ऐलान, मुसलमानों के पीर और औलियाओं की कब्र (मज़ार) पर जाना, कुछ मुस्लमान लीडर्स का पार्टियों द्वारा सार्वजनिक रूप से प्रसंशा करना आदि!  

मुसलमान आज देख रहा है, राजनैतिक पार्टियों और उम्मीदवारों का ट्रैक रिकॉर्ड का अध्ययन कर रहा है कि उन्होंने ने मुस्लिम समुदाय के लिए क्या किया? उनके भले के लिए क्या किया और बुरे में क्या किया? उम्मीदवारों को इसी आधार पर तौला जायेगा, इस विधान सभा चुनाव में!!! आज यह मांग बहुत तेजी से उठ रही है कि वह पार्टी जो ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा मुस्लिम को दे वही वोट की हक़दार होगी|  

मुसलमान यह चाहते है कि उनसे पुलिस द्वारा अनुचित तरीके से मुसलमान होने की वजह से प्रताडित ना किया जाये या बेवजह उनके युवाओं को पुलिस उठा कर ना ले जाये और बाद में उस पर फर्जी आरोप लगा कर जेल भेज दे या आतंकी का ठप्पा लगा दे | उसे गुजरात जैसे हादसों का दुबारा सामना न करना पड़े | वह नज़र रख रहें हैं कि कौन सच्चर कमिटी की सिफारिशों को अमल में लायेगा, कौन मुसलमानों की बदहाली हो ख़तम करेगा, कौन मुसलमानों को सम्मान से जीने के लिए क़दम उठाएगा, कौन उसे दोयम के बजाये बराबर का समझेगा | वह चाहता है कि भारतीय समाज में उसे भी इज्ज़त से जीने के लिए ज़मीन, आसमान और आज़ादी चाहिए!  


देश के ज़्यादातर प्रदेशों में अन्य प्रदेशों के समान ही आधार हैं जिन से यह तय होगा कि वह किसे वोट देंगी | लेकिन अन्य मुद्दों पर मुसलमानों के वोट्स उधर ही जायेंगे जिधर दुसरे भारतीय के जैसे - मुस्लिम दलित मुद्दा, यह मुद्दा हिन्दू दलित और ईसाई दलित के समान ही है | मुस्लिम OBC मुद्दा- यह मुद्दा हिन्दू OBC और ईसाई OBC के समान ही है| निम्न आय वर्ग में गरीब मुस्लिम का वोट भी वहीँ जायेगा जहाँ गरीब हिन्दू या गरीब ईसाई या दुसरे गरीबों का जायेगा | गरीब तो यह देखेंगे (चाहे वो कोई हों) कि कौन उनके infrastructure को संवारेगा और उनके लोकेलिटी को ऊपर उठने मौक़ा देगा| कोंग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रिय स्तर की पार्टियों में मुस्लिम की दिलचस्पी का ग्राफ कम होता जा रहा है और उनका वोट स्थानीय पार्टियों हथियाती जा रहीं है जिनमे प्रमुख हैं- समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रिय जनता दल, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, DMK, AIDMK आदि|
"भारत का मुसलमान उन्हें पार्टियों द्वारा हांथों हाँथ लिए जाने और लुभावने वादों आदि से अब सतर्क हो चूका है | इसके बजाये वह देख रहा है उसके साथ साफ़-सुथरा और समानता का व्यवहार ! किसी और चीज़ से ज़्यादा मुस्लिम्स उसे वोट देने के लिए अधिक झुकेंगे जो भारत में secular democratic structure को genuinely promote करेगा, ठीक उसी तरह से जैसे मुग़ल काल के बादशाहों के समय में था जिन्होंने एक हज़ार साल भारत देश पर एकछत्र शक्तिशाली शासन करने के बाद भी हिन्दू मुस्लिम सौहार्द बरक़रार रखा !"

सलीम खान 
संरक्षक 
स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़  
लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

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