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Monday, September 27, 2010

                    ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका होओ,मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं,जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना...क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है ऐसी बातें आज भी हम आये दिन,बल्कि रोज ही सुनते हैं....और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी "जुमला-प्रूफ"हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से...मगर जैसा कि मैं रो देखता हूँ कि स्त्री की सुन्दरता मात्र देखकर उसकी संगत चाहने वाले,उससे प्रेम करने वाले,छोटी-छोटी बच्चियों से मात्र सुन्दरता के आधार पर ब्याह रचाने वाले पुरुषों...और ख़ास कर सुन्दर स्त्रियों, बच्चियों को दूर-दूर तक भी जाते हुए घूर-घूर कर देखने की सभी उम्र-वर्गों की जन्मजात प्रवृति को देखते हुए यह पड़ता है कि स्रियों की बुद्धि भले घुटने में ही सही मगर कम-से-कम है तो सही....तुममे वो भी है,इसमें संदेह ही होता है कभी-कभी....स्त्रियों को महज सुन्दरता के मापदंड पर मापने वाले पुरुष ने स्त्री को बाबा-आदम जमाने से जैसे सिर्फ उपभोग की वस्तु बना कर धर रखा है और आज के समय में तो विज्ञापनों की वस्तु भी....तो दोस्तों नियम भी यही है कि आप जिस चीज़ को उसके जिस रूप में इस्तेमाल करोगे,वह उसी रूप में ढल जायेगी....समूचा पारिस्थितिक-तंत्र  इसी बुनियाद पर टिका हुआ है,कि जिसने जो काम करना है उसकी शारीरिक और मानसिक बुनावट उसी अनुसार ढल जाती है...अगर स्त्री भी उसी अनुसार ढली हुई है तो इसमें कौन सी अजूबा बात हो गयी !!    
                     दोस्तों हमने विशेषतया भारत में स्त्रियों को जो स्थान दिया हुआ है उसमें उसके सौन्दर्य के उपयोग के अलावा खुद के इस्तेमाल की कोई और गुंजाईश ही नहीं बनती...वो तो गनीमत है विगत कालों में कुछ महापुरुषों ने अपनी मानवीयता भरी दृष्टि के कारण स्त्रियों पर रहम किया और उनके बहुत सारे बंधक अधिकार उन्हें लौटाए....और कुछ हद तक उनकी खोयी हुई गरिमा उन्हें प्रदान भी की वरना मुग़ल काल और उसके आस-पास के समय से हमने स्त्रियों को दो ही तरह से पोषित किया....या तो शोषित बीवी....या फिर "रंडी"(माफ़ कीजिये मैं यह शब्द नहीं बदलना चाहूँगा.... क्योंकि हमारे बहुत बड़े सौभाग्य से स्त्रियों के लिए यह शब्द आज भी देश के बहुत बड़े हिस्से में स्त्रियों के लिए जैसे बड़े सम्मान से लिया जाता है,ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्ली और उसके आस-पास "भैन...चो....और भैन के.....!!)जब शब्दों का उपयोग आप जिस सम्मान के साथ अपने समाज में बड़े ही धड़ल्ले से किया करते हो....तो उन्हीं शब्दों को आपको लतियाने वाले आलेखों में देखकर ऐतराज मत करो....बल्कि शर्म करो शर्म....ताकि उस शर्म से तुम किसी को उसका वाजब सम्मान लौटा सको....!!
                 तो दोस्तों स्त्रियों के लिए हमने जिस तरह की दुनिया का निर्माण किया....सिर्फ अपनी जरूरतों और अपनी वासनापूर्ति के लिए....तो एक आर्थिक रूप से गुलाम वस्तु के क्या हो पाना संभव होता....??और जब वो सौन्दर्य की मानक बनी हुई है तो हम कहते हैं कि उसकी बुद्धि घुटने में....ये क्या बात हुई भला....!!....आपको अगर उसकी बुद्धि पर कोई शक तो उसे जो काम आप खुद कर रहे हो वो सौंप कर देख लो....!!और उसकी भी क्या जरुरत है....आप ज़रा आँखे ही खोल लो ना...आपको खुद ही दिखई दे जाएगा....को वो कहीं भी आपसे कम उत्तम प्रदर्शन नहीं कर रही,बल्कि कहीं -कहीं तो आपसे भी ज्यादा....कहने का अर्थ सिर्फ इतना ही है कि इस युग में किसी को छोटा मत समझो...ना स्त्री को ना बच्चों को...वो दिन हवा हुए जब स्त्री आपकी बपौती हुआ करती थी...अब वो एक खुला आसमान है...और उसकी अपनी एक परवाज है...और किसी मुगालते में मत रहना तुम....स्त्री की यह उड़ान अनंत भी हो सकती है....यहाँ तक कि तुम्हारी कल्पना के बाहर भी....इसीलिए तुम तो अपना काम करो जी...और इस्त्री को अपना काम करने दो.....उसकी पूरी आज़ादी के साथ......ठीक है ना.....??आगे इस बात का ध्यान रखना....!!!

Tuesday, September 7, 2010

एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!!



Monday, September 6, 2010


एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!

मेरे प्यारे सम्मानीय दोस्तों......
सचमुच मैं ऐसा मानता हूँ कि हमारे देश में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसके लिए समस्याओं का पहाड़ बना दिया जाए....मगर हम देखते हैं कि ऐसा ही है....और ऐसा देखते वक्त अक्सर मेरी आँखें छलछलाई जाती हैं....मगर शायद मैं भी देश के कतिपय उन कुछ कायर लोगों में से एक हूँ....जो डफली तो बहुत बजाते हैं....मगर उसमें से कोई राग नहीं पैदा होता....और ना ही अपने खोखे से निकल कर किसी चौराहे पर आते हैं कि जिससे कोई आवाज़ कहीं तक भी पहुंचे मगर उफ़ किसी की कोई आवाज़ कहीं तक भी नहीं पहुँचती....अक्सर ऐसा लगता है कि हम पागल कुत्तों की तरह बेकार ही भूंक रहे हैं....क्योंकि जिनको सुनाने के लिए हम भूंके जा रहे हैं...उनके कानों में जूं तो क्या रेंगेगी...शायद उनतक हमारी आवाज़ पहुँचती ही नहीं.....मगर मैं देख रहा हूँ कि कब तक नीरो चैन की बंशी बजाता रहेगा....कब तक हम सोते रहेंगे....मगर दोस्तों इतना तो तय जानिये जिस दिन हमारी आँख खुलेगी....उस दिन इन नीरों को अपनी बंशी छोड़कर घुटनों के बल चलकर हम तक आना होगा....और देखिये कि कब तक हम इस कुंभकर्णी नींद में सोये रहते हैं....!!!!बाकी आपके द्वारा इस नाचीज़ के विचारों को सम्मान दिए जाने पर मैं अभिभूत हूँ....आप विचार का सम्मान अब तक करते हो...तो इतना तो जाहिर है कि लौ अभी बुझी नहीं है....बस उसे थोड़ा हवा दिए जाने की जरुरत है....और बस.....आग लग जानी है....इस सिलसिले में मैं अपना यह आलेख भी आप तक पहुंचा रहा हूँ....!!
                                        एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!
क्यूं सरकार बनाना चाहते हैं आप सरकार.....??
                         ....हे सरकार बनाने वालों....इधर देख रहा हूं कि बडी छ्टफटी लगी हुई है आप सबको सरकार बनाने की,क्यूं माई बाप ऐसी भी क्या हड्बडी हो गयी है अचानक आप सबको...कि आव-न-देखा ताव...वाली धून में आप सब सरकार बनाने को व्याकुल हो रहे हो,यहां तक किसी अंधे को भी आप सबों की यह व्यग्रता दिखाई पड रही है.किसी को समझ ही नहीं आ रहा है कि यकायक ऐसा क्या घट गया कि आप सब ऐसे बावले हुए जा रहे हो सरकार बनाने के लिये....लेकिन हां,कुछ-कुछ तो हम सब्को समझ आ ही रहा है कि यह सब क्यूं हो रहा है...!!
             आप सब पर शायद आप सबके द्वारा किए गये घोटालों की तलवार लटक रही है ना शायद....आप सब वही है ना जो अभी से दस साल पहले से लेकर अभी कुछ दिनों पूर्व तक एक-एक कर बने दलीय या निर्दलीय मुख्यमंत्री थे..और उस दौरान आप और आपके साथियों ने क्या-क्या गुल-गपाडा किया था क्या आप सब उस सबको भूल गये...या आप चाहते हैं कि जनता उसे भूल जाये ...!!हा....हा....हा....हा....हा....मैं भी क्या-क्या बके जा रहा हूं....जनता तो वैसे ही सब कुछ भूल जाती है....तभी तो बार-बार आप सबों से धोखा खाने के बावजूद बार-बार आप सबमें से उलट-पुलट कर फिर-फिर से उन्हीं कुछ लोगों को वापस वहीं भेज देती है,जहां से अभी-अभी कुछ दिनों पहले ही लुट-पिट कर आयी थी....पता नहीं क्यों भारत की जनता के दिल में विश्वास नाम की चीज़ जाने किस अकूत मात्रा में ठूस-ठूस कर भरी हुई है कि साला खत्म ही नहीं होने को आता....और इसी के चलते पिछली बार ही चुनाव में हारा व्यक्ति इस बार फिर से जीत कर ठसके से संसद या विधान-सभा में जा पहुंचता है...और किसी की आंखे भी नहीं फटती...!!
                         पता नहीं क्यों यह कुडमगज जनता ऐसा क्यों सोचती है कि इस बार यह आदमी सुधर गया होगा....इस बार "सार" ई बबुआ सुधरिए गया होगा....और सत्ता के खेल के पिछ्वाडे में फिर से वही कुचक्र रचा जाने लगता है...फिर से राज्य-देश और संविधान के "पिछ्वाडे" में लातें जमायी जाने लगती हैं...और किसी भी माई के लाल को कभी भी यह अहसास नहीं हो पाता कि वह भी इसी मिट्टी की संतान है....और अभी कुछ दिनों पहले वह भी यहां के स्थानीय लोगों के साथ...जनम-जनम के साथ की तरह रहा करता था....यहीं की बोली-चाली में रचा-पगा वह यहीं के लोगों के साथ यहीं के वार-त्योहार मनाता था और यहीं के लोगों के दुख-दर्द-हारी-बीमारी-पीडा-म्रत्यु आदि में शरीक हुआ करता था...ऐसा लगता है कि राजनीति को उसने अपने "लिफ़्ट" कराने भर की सीढी मात्र बनाया हुआ था...और लिफ़्ट होते ही उसका इस परिवेश से-इस वातावरण से-इस सहभागिता से नाता ही टूट गया...किसी नयी दुल्हन बनी  लड्की की तरह...जैसे एक लडकी अपनी शादी के तुरंत पश्चात अपने पति के घर के नये वातावरण- नये परिवेश के अनुसार खुद को ढाल लेती है यहां तक कि थोडे ही दिनों में अपने बाबुल के घर कभी-कभार आने के अलावा सभी नातों से विरक्त हो जाती है...आप सब भी हे सरकार बनाने वालों शायद ठीक वैसे ही लगते हो मुझे....लेकिन दुल्हन का यह जो उदाहरण दिया है मैंने,यह अधुरा है अभी क्योंकि पूरी बात तो यह है कि यह दुल्हन ज्यादातर अपने घर को बनाती है,इसकी रखवाली करती है....इसके वंश को बढाती है....वंशजों को पालती है-पोषती है,उनकी रखवाली करती है...अपना खून भी देना पडे तो देकर उस घर की रक्षा करती है...!!
                             तुम जरा सोचो ओ सरकार बनाने वालों कि यदि यह दुल्हन अगर तुम्हारी तरह हरामखोर या विभीषण हो जाए तब....!!तब क्या होगा...??अरे होगा क्या....तुम्हारी संताने नाजायज होंगी और तुम्हे पता भी नहीं होगा....!!तुम्हारे सच्चे वंश का भी तुम्हे पता ना होगा....क्या तुमने कभी सपने में भी यह सोचा या चाहा है कि तुम्हारे घर में कभी ऐसा हो...तुम्हारी दुल्हन कोई वेश्या या दुश्चचरित्र हो....!!...अगर नहीं...तो ओ सरकार बनाने वालों....तुम अपने राज्य या देश रूपी घर के लिए ऐसा क्यूं और कैसे सोचा करते हो....और दिन-रात...अपने देश और राज्य के प्रति दुश्च्रित्रिय आचरण कैसे किया करते हो...??क्या तुम्हें इस बात का कोई भान भी है कि इसका असर तुम्हारे खुद के वंशजों पर क्या पडेगा....कभी तुमने ऐसा सोचकर देखा भी है कि कल को तुम्हारे बच्चे किसी स्कूल में पढ रहे हों या सडक पर कहीं जा रहे हों और उनके पीछे अचानक यह जुमला उनके कानों में आ पडे..."देखो हरामखोर की औलाद....!!""देखो वो जा रही उस साले हरामजादे की बेटी,पता है इसकी मां....!!""वो देखो...वो देखो क्या पहलवान बना फिर रहा साला....साला मर्सिडीज बेंज दिखाता है....बाप की हराम की कमाई...!!"
                लेकिन ये जुमले तो बडे साधारण हैं...आप कल्पना करो कि कैसे-कैसे और कितने-कितने गन्दे जुमले तुम्हारे बच्चे-बच्चियों के लिए सरे-राह,सरे-आम और किस टोन में इस्तेमाल किए जा सकते हैं...!!और तुम्हारी खून और वीर्य से उत्पन्न वो सन्तानें किस कदर शर्म से पानी-पानी हो सकती हैं....दोस्तों...जरा यह भी सोचो कि ऐसे वक्त उन पर क्या गुजरेगी,सो कोल्ड जिनके लिए-जिनकी खुशी के लिए तुम सब इन गन्दे कार्यों को अंजाम दे रहे हो.....!!!   
                             तुम सब अगर अपने लिए और अपने बच्चों के लिए उज्जवल और प्यारा भविष्य चाहते हो तो अपने राज्य-अपने देश को अपने माँ-बात की तरह इज्ज़त दो सम्मान दो....इसके निवासियों का हक़ लूटने के बजाय इनकी सच्ची रहनुमाई करो...इनकी खातिर और इनके हक़ का कार्य करो....अरे पागलों पैसा तो तब भी तुम्हारे हाथ पर्याप्त आ जाएगा....तुम क्यों हाय-पैसा--हाय पैसा किए जाते हो...क्यूँ नहीं समझते कि ये पैसा तुम्हारे भविष्य का कटु अन्धकार है...और तुम्हारी संतानों के लिए घोर श्रम से डूब मरने का एक साधन...अगर तुम्हें अपने आने वाले भविष्य के लिए गदगी ही छोडनी है तब तो कुछ कहा और किया नहीं जा सकता...मगर अगर सच में तुम्हें देश में पीडी-दर-पीडी अमर होना है और वो भी अपने नाम की सुन्दरता के रूप में तो मेरे अनाम भाईयों ओ सरकार बनाने वालों,अपने शौर्य को राज्य और देश की बेहतरी की खातिर खर्च करो....और देखना अगर तुम स्वर्ग के आसमान देख पाए तो,कि तुम्हारी संतानें तुम्हारे नाम पर क्या गर्वोन्मत्त जीवन जी पा रही है.....और सर उठाकर सबसे कहे जा रही कि हाँ....देखो यह हमारे पापा ने किया था.....देखो ये काम मेरे दादाजी ने किया था....!!!

Monday, September 6, 2010

एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!!


Monday, September 6, 2010

एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!

मेरे प्यारे सम्मानीय दोस्तों......
सचमुच मैं ऐसा मानता हूँ कि हमारे देश में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसके लिए समस्याओं का पहाड़ बना दिया जाए....मगर हम देखते हैं कि ऐसा ही है....और ऐसा देखते वक्त अक्सर मेरी आँखें छलछलाई जाती हैं....मगर शायद मैं भी देश के कतिपय उन कुछ कायर लोगों में से एक हूँ....जो डफली तो बहुत बजाते हैं....मगर उसमें से कोई राग नहीं पैदा होता....और ना ही अपने खोखे से निकल कर किसी चौराहे पर आते हैं कि जिससे कोई आवाज़ कहीं तक भी पहुंचे मगर उफ़ किसी की कोई आवाज़ कहीं तक भी नहीं पहुँचती....अक्सर ऐसा लगता है कि हम पागल कुत्तों की तरह बेकार ही भूंक रहे हैं....क्योंकि जिनको सुनाने के लिए हम भूंके जा रहे हैं...उनके कानों में जूं तो क्या रेंगेगी...शायद उनतक हमारी आवाज़ पहुँचती ही नहीं.....मगर मैं देख रहा हूँ कि कब तक नीरो चैन की बंशी बजाता रहेगा....कब तक हम सोते रहेंगे....मगर दोस्तों इतना तो तय जानिये जिस दिन हमारी आँख खुलेगी....उस दिन इन नीरों को अपनी बंशी छोड़कर घुटनों के बल चलकर हम तक आना होगा....और देखिये कि कब तक हम इस कुंभकर्णी नींद में सोये रहते हैं....!!!!बाकी आपके द्वारा इस नाचीज़ के विचारों को सम्मान दिए जाने पर मैं अभिभूत हूँ....आप विचार का सम्मान अब तक करते हो...तो इतना तो जाहिर है कि लौ अभी बुझी नहीं है....बस उसे थोड़ा हवा दिए जाने की जरुरत है....और बस.....आग लग जानी है....इस सिलसिले में मैं अपना यह आलेख भी आप तक पहुंचा रहा हूँ....!!
                                        एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!
क्यूं सरकार बनाना चाहते हैं आप सरकार.....??
                         ....हे सरकार बनाने वालों....इधर देख रहा हूं कि बडी छ्टफटी लगी हुई है आप सबको सरकार बनाने की,क्यूं माई बाप ऐसी भी क्या हड्बडी हो गयी है अचानक आप सबको...कि आव-न-देखा ताव...वाली धून में आप सब सरकार बनाने को व्याकुल हो रहे हो,यहां तक किसी अंधे को भी आप सबों की यह व्यग्रता दिखाई पड रही है.किसी को समझ ही नहीं आ रहा है कि यकायक ऐसा क्या घट गया कि आप सब ऐसे बावले हुए जा रहे हो सरकार बनाने के लिये....लेकिन हां,कुछ-कुछ तो हम सब्को समझ आ ही रहा है कि यह सब क्यूं हो रहा है...!!
             आप सब पर शायद आप सबके द्वारा किए गये घोटालों की तलवार लटक रही है ना शायद....आप सब वही है ना जो अभी से दस साल पहले से लेकर अभी कुछ दिनों पूर्व तक एक-एक कर बने दलीय या निर्दलीय मुख्यमंत्री थे..और उस दौरान आप और आपके साथियों ने क्या-क्या गुल-गपाडा किया था क्या आप सब उस सबको भूल गये...या आप चाहते हैं कि जनता उसे भूल जाये ...!!हा....हा....हा....हा....हा....मैं भी क्या-क्या बके जा रहा हूं....जनता तो वैसे ही सब कुछ भूल जाती है....तभी तो बार-बार आप सबों से धोखा खाने के बावजूद बार-बार आप सबमें से उलट-पुलट कर फिर-फिर से उन्हीं कुछ लोगों को वापस वहीं भेज देती है,जहां से अभी-अभी कुछ दिनों पहले ही लुट-पिट कर आयी थी....पता नहीं क्यों भारत की जनता के दिल में विश्वास नाम की चीज़ जाने किस अकूत मात्रा में ठूस-ठूस कर भरी हुई है कि साला खत्म ही नहीं होने को आता....और इसी के चलते पिछली बार ही चुनाव में हारा व्यक्ति इस बार फिर से जीत कर ठसके से संसद या विधान-सभा में जा पहुंचता है...और किसी की आंखे भी नहीं फटती...!!
                         पता नहीं क्यों यह कुडमगज जनता ऐसा क्यों सोचती है कि इस बार यह आदमी सुधर गया होगा....इस बार "सार" ई बबुआ सुधरिए गया होगा....और सत्ता के खेल के पिछ्वाडे में फिर से वही कुचक्र रचा जाने लगता है...फिर से राज्य-देश और संविधान के "पिछ्वाडे" में लातें जमायी जाने लगती हैं...और किसी भी माई के लाल को कभी भी यह अहसास नहीं हो पाता कि वह भी इसी मिट्टी की संतान है....और अभी कुछ दिनों पहले वह भी यहां के स्थानीय लोगों के साथ...जनम-जनम के साथ की तरह रहा करता था....यहीं की बोली-चाली में रचा-पगा वह यहीं के लोगों के साथ यहीं के वार-त्योहार मनाता था और यहीं के लोगों के दुख-दर्द-हारी-बीमारी-पीडा-म्रत्यु आदि में शरीक हुआ करता था...ऐसा लगता है कि राजनीति को उसने अपने "लिफ़्ट" कराने भर की सीढी मात्र बनाया हुआ था...और लिफ़्ट होते ही उसका इस परिवेश से-इस वातावरण से-इस सहभागिता से नाता ही टूट गया...किसी नयी दुल्हन बनी  लड्की की तरह...जैसे एक लडकी अपनी शादी के तुरंत पश्चात अपने पति के घर के नये वातावरण- नये परिवेश के अनुसार खुद को ढाल लेती है यहां तक कि थोडे ही दिनों में अपने बाबुल के घर कभी-कभार आने के अलावा सभी नातों से विरक्त हो जाती है...आप सब भी हे सरकार बनाने वालों शायद ठीक वैसे ही लगते हो मुझे....लेकिन दुल्हन का यह जो उदाहरण दिया है मैंने,यह अधुरा है अभी क्योंकि पूरी बात तो यह है कि यह दुल्हन ज्यादातर अपने घर को बनाती है,इसकी रखवाली करती है....इसके वंश को बढाती है....वंशजों को पालती है-पोषती है,उनकी रखवाली करती है...अपना खून भी देना पडे तो देकर उस घर की रक्षा करती है...!!
                             तुम जरा सोचो ओ सरकार बनाने वालों कि यदि यह दुल्हन अगर तुम्हारी तरह हरामखोर या विभीषण हो जाए तब....!!तब क्या होगा...??अरे होगा क्या....तुम्हारी संताने नाजायज होंगी और तुम्हे पता भी नहीं होगा....!!तुम्हारे सच्चे वंश का भी तुम्हे पता ना होगा....क्या तुमने कभी सपने में भी यह सोचा या चाहा है कि तुम्हारे घर में कभी ऐसा हो...तुम्हारी दुल्हन कोई वेश्या या दुश्चचरित्र हो....!!...अगर नहीं...तो ओ सरकार बनाने वालों....तुम अपने राज्य या देश रूपी घर के लिए ऐसा क्यूं और कैसे सोचा करते हो....और दिन-रात...अपने देश और राज्य के प्रति दुश्च्रित्रिय आचरण कैसे किया करते हो...??क्या तुम्हें इस बात का कोई भान भी है कि इसका असर तुम्हारे खुद के वंशजों पर क्या पडेगा....कभी तुमने ऐसा सोचकर देखा भी है कि कल को तुम्हारे बच्चे किसी स्कूल में पढ रहे हों या सडक पर कहीं जा रहे हों और उनके पीछे अचानक यह जुमला उनके कानों में आ पडे..."देखो हरामखोर की औलाद....!!""देखो वो जा रही उस साले हरामजादे की बेटी,पता है इसकी मां....!!""वो देखो...वो देखो क्या पहलवान बना फिर रहा साला....साला मर्सिडीज बेंज दिखाता है....बाप की हराम की कमाई...!!"
                लेकिन ये जुमले तो बडे साधारण हैं...आप कल्पना करो कि कैसे-कैसे और कितने-कितने गन्दे जुमले तुम्हारे बच्चे-बच्चियों के लिए सरे-राह,सरे-आम और किस टोन में इस्तेमाल किए जा सकते हैं...!!और तुम्हारी खून और वीर्य से उत्पन्न वो सन्तानें किस कदर शर्म से पानी-पानी हो सकती हैं....दोस्तों...जरा यह भी सोचो कि ऐसे वक्त उन पर क्या गुजरेगी,सो कोल्ड जिनके लिए-जिनकी खुशी के लिए तुम सब इन गन्दे कार्यों को अंजाम दे रहे हो.....!!!   
                             तुम सब अगर अपने लिए और अपने बच्चों के लिए उज्जवल और प्यारा भविष्य चाहते हो तो अपने राज्य-अपने देश को अपने माँ-बात की तरह इज्ज़त दो सम्मान दो....इसके निवासियों का हक़ लूटने के बजाय इनकी सच्ची रहनुमाई करो...इनकी खातिर और इनके हक़ का कार्य करो....अरे पागलों पैसा तो तब भी तुम्हारे हाथ पर्याप्त आ जाएगा....तुम क्यों हाय-पैसा--हाय पैसा किए जाते हो...क्यूँ नहीं समझते कि ये पैसा तुम्हारे भविष्य का कटु अन्धकार है...और तुम्हारी संतानों के लिए घोर श्रम से डूब मरने का एक साधन...अगर तुम्हें अपने आने वाले भविष्य के लिए गदगी ही छोडनी है तब तो कुछ कहा और किया नहीं जा सकता...मगर अगर सच में तुम्हें देश में पीडी-दर-पीडी अमर होना है और वो भी अपने नाम की सुन्दरता के रूप में तो मेरे अनाम भाईयों ओ सरकार बनाने वालों,अपने शौर्य को राज्य और देश की बेहतरी की खातिर खर्च करो....और देखना अगर तुम स्वर्ग के आसमान देख पाए तो,कि तुम्हारी संतानें तुम्हारे नाम पर क्या गर्वोन्मत्त जीवन जी पा रही है.....और सर उठाकर सबसे कहे जा रही कि हाँ....देखो यह हमारे पापा ने किया था.....देखो ये काम मेरे दादाजी ने किया था....!!!