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Monday, March 30, 2009

इस देश को बचा लो ओ लोगों......!!

Tuesday, March 31, 2009

इस देश को बचा लो ओ लोगों......!!

चुनाव के दिन
लच्छेदार बातें !!
नेताओं के द्वारा
शब्दों की टट्टी !!
जिनका कोई नहीं अर्थ
वो ढपोरशंखी शब्द !!
दिलासा देते सबको
कुछ वाहियात लोग !!
जो माँ को बेच दे,ऐसे लोग
भारत माँ के तारणहार !!
खा-पीकर जुगाली करते
ये मनचले-मनहूस लोग !!
इनको यहाँ से बाहर निकालो लोगों
इन सबको पटखनी दे दो लोगों !!
इन माँ के बलात्कारियों ने
चुतिया बनाया बनाया तुम्हे साथ साल.......
इन सड़क पर पीट कर अधमरा करो लोगों !!
तुम सबके साथ रो रहा हूँ मैं भी.....
इन सालों को दफन कर दो लोगों !!
अपराधियों को कतई वोट मत दे देना
उनके साथ तुम ना रेपिस्ट बन जाना !!
भारत मांग रहा है आज बलिदान
कम-से-कम इतना तो दो प्रतिदान !!
एक वोट जरूर से जाकर दे आना
वरना इस देश को अपना ना कहना !!
तुम्हारा एक वोट संविधान के माथे पर
एक बहुमूल्य तिलक है लोगों !!
इसे वाजिब उम्मीदवार को देकर
इसकी पवित्रता बचा लो लोगों !!
इस देश ने दिया है अगर तुम्हे कुछ भी
इस देश को आज बचा लो लोगों !!

अल्ला रे क्या हूँ मैं....???

अल्ला रे क्या हूँ मैं......??
अपनी ही धून में गम हूँ मैं

बस थोड़ा सा गुमसुम हूँ मैं !!
मुझसे तू क्या चाहता है यार
अरे तुझमें ही तो गुम हूँ मैं !!
बस गाता ही गाता रहता हूँ
कुछ सुर हूँ,कुछ धून हूँ मैं !!
याँ से निकलकर कहाँ जाऊं
आज इसी उधेड़बून में हूँ मैं !!
जागने और सो जाने के बीच
किसी और की ही रूह हूँ मैं !!
अल्ला रे मेरा क्या होगा यार
कि ख़ुद तो मैं हूँ ना तुम हूँ मैं !!
"गाफिल"मुझे इतना तो बता
मैं अकेला हूँ कि हुजूम हूँ मैं !!

Sunday, March 29, 2009

जिसका डर था वही हुआ

दोपहर में मेरी ख़बर वरुण पर रशुका लगने को तैयार है

और बही हुआ जिसका डर था
रासुका खाली एक या दो केश पर नही लगाई जाती इसके लिए अह्चा क्राइम रेकोउर्द होना चाहिए

इसके लिए राज्यपाल कि अनुमति मिलनी चहिये और सरकार का समर्थन
३६५ दिन या एक साल तक जेल में रहने का नियम

लगने के २४ /४८ गनते में लाखानाओ की अदालत में आना होगा
मतलब अब
मिडिया ख़बर और

हाँ एक अपराध हुआ था चुनाव कमिश्नर से और भाजपा ने मुद्दा बनाया था
और रस्पती को पॉवर है सभी कानून माफ़ करने का तो उनकी और से माफी मिल गयी

अब खामियाजा बीजेपी से होगा

पर ये नही सही हुआ
कि बरुन पर जब वो गिरफ्तारी के लिए अदालत गया तो
उस पर कई धारा लगा दी और रासुका भी जिसमे ३०७ की धारा भी है जो कि जान से मरने का अपराध है और वक्ती का बच जाना है

तो सवाल ये है कि बरुन ने किया क्या


कल के व्यान हो सकते है
कि वरुण को रशुका और संसद के आरोपी को मदद
प्रज्ञा पर मकोका और पाक के कसब पर ........
और भी बातें आयेंगी
पर बात है कि
अगर कल द्नागे होंगे तो
उसमे हुयी मौत का जिमेबार कौन होगा

क्या डीएम क्या राजपाल
या कोई सरकार इसकी जिमेदारी कुन लेगा

या जेल में बंद वरुण

सोचे और बताये
अगर ये आप को ये राय मानशिक उल्जन कर रही हा तो आप
सागर जी को या मुझे बताये और कहे कि इसे हटा दिया जाए
धन्यबाद

आज की ताजा खबर वरुण पर रासुका की तैयारी

कल कि ख़बर वरुण को जेल ताज़ा ताज़ा
आज की ताजा खबर वरुण पर रासुका की तैयारी जी नूज़ लगभग १२.३० पर


रासुका में ३६५ दिन तक अभियुक्त को जेल में रखा जाता है | और इसके बाद ही निकल सकता है

इस ख़बर पर कविता नही करूँगा और अपना मत दूंगा तो साफ़ होना चाहिए
और हर बात के दो अर्थ निकले जा सकते है { सही और ग़लत } हो सकता हा

कि वो सही हो या ग़लत !
पर ये कौन तय करेगा ?
इसमे छुपा खेल क्या है



हो सकता है ............

बी यस पी ( मायाबती का वोटर ) ब्राहमण का बी जे पी में पलायन को रोकना
कांग्रेश का अपने घटकों के शाथ उदा पटक होने के बाद दुबारा शायद ही सत्ता तक पहुचना मुश्किल
मायाबती और कग्रेश का जोड़ ( जीत के आकडों पर निर्भर )
मोदी के बाद बरुन ही option है बीजेपी के पास


अम्बरीष

Thursday, March 26, 2009

पापा मैं स्कूल नहीं जाउंगी.....!!


अभी-अभी अपनी छोटी बिटिया मौली को स्कूल छोड़कर रहा हूँ,जिसे दस दिनों पहले ही स्कूल में दाखिल किया है....उसकी उम्र ढाई साल है....और रोज--रोज स्कूल के दरवाजे पर पहुँचते ही इतना रोटी है कि उसे वापस घर ले आने को मन करता है....और तक़रीबन सारे ही बच्चे स्कूल के गेट के एब सम्मुख आते ही जोरों से चिंघाड़ मारना शुरू करते हैं....और सारा माहौल ही रुदनमय हो जाता है...कितनी ही माताओं की आँखे नम हो जाती हैं....और कुछ को तो मैंने बच्चों को छोड़कर गेट पर ही रोते हुए भी देखता हूँ....ख़ुद मेरी भी आँखे कुछ कम नहीं नम होती...मगर बच्ची को स्कूल जाना है तो जाना है...अब चाहे रोये...चीखे या चिल्लाए....अपना दिल काबू कर उसे रोता हुआ छोड़कर अपने को रोज वापस जाना होता है......!!
सवाल बच्चे द्वारा नई जिन्दगी की शुरुआत का नहीं है....मेरे लिए सवाल बच्चे की उम्र का है...जो दो से ढाई साल का है...यहाँ तक कि बहुत से शहरों में तो ग्यारह-ग्यारह महीनों के बच्चे भी स्कूल में लिए जा रहे हैं...और उनके कामकाजी माता-पिता कितनी राजी-खुशी उन्हें स्कूल छोड़कर बड़े आराम से अपने काम को रवाना हुए जा रहे हैं.... और फिर बच्चा स्कूल से वापस दाई या नौकर के साथ लौटता है....और फिर माँ-बाप के वापस लौटने तक उन्ही के साथ अकेला या किसी की किस्मत अच्छी हुई तो किसी पार्क आदि में खेलने का मौका मिल जाता है.... जबकि हमने शायद छः या सात साल में स्कूल का स्वाद चखा था...उस उम्र में में भी हम,मुझे याद आता है कि हम रोया करते थे....और कई बार मन नहीं करता था तो माँ-बाप हमें स्कूल जाने से रोक भी दिया करते थे....माँ-बाप द्बारा दिया गया यह प्रेम आज भी उनके प्रति अथाह सम्मान के रूप में हमारे ह्रदय में कायम है....और कभी भी हम उनकी अवज्ञा करने की हिमाकत नहीं करते....और जहाँ तक किसी समस्या पर अपने विचारों और दुनिया की वस्तुस्थिति से उनको अवश्य रु--रु कराते हैं.....अपने प्रेम को हमने अपनी माँ को इसी तरह समझाकर विवाह का जामा पहनाया था.....अलबत्ता झगडे तो कहाँ नहीं होते.....!!
लेकिन ये सब लिखने का कारण यह है कि ढाई साल से बच्चे से हम आख़िर चाहते क्या हैं....सवेरे इक बेहद ही गहरी और प्यारी नींद में सोये बच्चे को जबरन उठाना(ध्यान रहे कि उसकी उम्र कितनी है....!!!!!)और कभी धक्के मार कर कभी बहलाकर उसे तैयार करना....और रोते हुए ही उसे स्कूल को रवाना कर देना.....बेशक हम अपना अतीत नहीं देखते....हमने शायद सात साल की उम्र में पढ़ना शुरू किया....तो क्या हमारे ज्ञान में कोई कमी रह गई है....या किसी भी इंसान से हम कमतर इंसान हो गए हैं....!!
बच्चा अगर ढाई-तीन की उम्र से स्कूल ना जाकर चार-पाँच साल की उम्र में स्कूल जाए तो इसमें हर्जा क्या है.....??ये शुरू के बरस वो घर और उसके आस-पास खेलता रहकर और घर में ही खेलता-खाता हुआ बिना एग्जाम की जहमत उठाये हुए कुछ सीख-साख ले तो इसमें हर्जा क्या है.....??ढाई साल का इक बच्चा दुनियादारी कुछ सालों बाद ही सीख ले इसमें हर्जा क्या है.....??और अंत में एक बात यह भी कि हम अपने बच्चों से आख़िर चाहते क्या हैं.....????..........अपनी इच्छा से जो महत्वाकांक्षा उन्हें हम सौंपते है......आप मानिए या मानिए....जब वो कुछ बनने के लिए प्रोफेशनल बनाना शुरू करते हैं.....तो शायद उनकी नज़र में हम उनके माँ-बाप तो क्या,इक अजनबी से ज्यादा कुच्छ नहीं रह जाते....बेशक हम तब ता-जिन्दगी उनकी बेदर्दी को लेकर ता-जहाँ कलपते रहे...
जो हम रोपते हैं....वही हम पाते हैं.....हम बच्चे को ढाई साल से ही ख़ुद से दूर करना शुरू कर देते हैं....तो बच्चे से यह तनिक भी उम्मीद ना करे कि आने वाले समय में वो हमारे पास फटक पायेगा....या कि हमसे जुदा हुआ रह पायेगा....दोस्तों....बहुत-सी बातों पर हम विचार ही नहीं करते या सिर्फ़ विचार करके ही रह जाते हैं...उनके परिणामों की बाबत सोचना शायद हमारे बूते के बाहर होता है.....या किसी दबाव में हम जाते हैं.....जैसे अपनी ढाई साल की छोटी-सी बच्ची को डाला है मैंने स्कूल में अपनी घरवाली के दबाव में.....अपनी पिछली बच्ची प्राची की तरह......!!