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Sunday, March 1, 2009

हिंदी टीवी चैनलों का झूठ !

सख्त अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि भारत के टी वी चैनल (एनडीटीवी इंडिया को छोड़ कर), समाचार के नाम पर झूठ परोसने में सारी सीमाएं लांघते जा रहे हैं। ख़ास कर हिंदी टी वी चैनल। मुंबई की बारिश की ख़बरें सनसनीखेज़ बनाने के चक्कर में इन हिंदी चैनलों ने झूठी खबरों और तस्वीरों के जरिये मुंबई और बाक़ी जगहों में घबराहट फैला दी है। कुछ उदाहरण इन झूटी ख़बरों और तस्वीरों के- !1. मंगलवार की शाम “सहारा समय” ने मुंबई के उपनगर गोरेगांव की ख़बर दी और कहा कि वहां सड़कों पर 2-3 फुट पानी भर गया था। इस खबर के साथ तस्वीर दिखायी जा रही थी वहां से क़रीब 30 किलोमीटर दूर के इलाके, मरीन ड्राइव के समुद्री किनारे की जहां समंदर की ऊंची लहरें सड़क पर बौछार के रूप में गिर रही थीं।
2. “टाइम्स नाउ” ने भी उसी दिन दोपहर में मुंबई के लोअर परेल इलाके की सड़कों के वीडियो दिखाये। उस इलाके में पानी भरा हुआ था और वहां चल रहे ऑटोरिक्शा क़रीब आधा फुट पानी में डूबे हुए थे। मुंबई से परिचित कोई भी व्यक्ति जानता है कि लोअर परेल में ऑटोरिक्शा नहीं चलते, सिर्फ़ टैक्सियां चलती हैं। ऑटोरिक्शा सिर्फ़ उपनगरों में चलते और लोअर परेल उपनगर में नहीं शहर में आता है। जाहिर है कि वह वीडियो लोअर परेल का नहीं बल्कि किसी उपनगर का था। !3. “आज तक” में सोमवार की रात 8.30 बजे खबर दिखाई जा रही थी कि मुंबई में बारिश लगातार जारी है। साथ में जो वीडियो दिखाया जा रहा था उसमें दिन का उजाला दोपहर की तरह फैला हुआ था। !
सिर्फ़ और सिर्फ़ एनडीटीवी इंडिया ने दिखाया कि किस तरह बारिश और पानी के जमाव के बावजूद मुंबईवासी काम पर जा रहे थे, बच्चे स्कूल जा रहे थे, लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। यानी कि मुंबई चल रही थी और हर साल की तरह बारिश की तकलीफ और आनंद- दोनों के साथ जी रहे थे।!
मुंबई में हर साल बारिश में ऎसा होता ही है कि पानी के जमाव के कारण आम ज़िंदगी अस्त-व्यस्त हो जाये। लेकिन मुंबई वाले इससे डर कर घर पर नहीं बैठ जाते। हर कोई कोशिश करता है कि वह अपने कार्यस्थल तक पहुंच जाये, भले देर से पहुंचे। बच्चे स्कूल जाते ही हैं, लोग समंदर किनारे घूमने जाते ही हैं। !
लेकिन अफसोस, हमारे हिंदी टीवी चैनलों का यकीन करें तो मुंबई में जल-प्रलय आयी हुई है, शहर तबाही के कगार पर है और लोगों पर दिक्कतों का पहाड़ टूट पड़ा है। !
अगर यह सच है तो कैमरों के सामने लोग हाथ हिलाते हुए हंसते कैसे दिखाई दे रहे हैं? पानी भरी सड़कों पर युवक फुटबॉल खेलते क्यों दिख रहे हैं? पानी भरी सड़कों पर चप्पलें हाथ में लिये, काम पर जाती औरतें मुस्करा क्यों रही हैं? रेलवे स्टेशनों पर काम पर जाने के लिये निकले लोगों की भीड़ क्यों लगी हुई है? !
क्योंकि ये टीवी चैनल सनसनी फैलाने के चक्कर में आधा सच और कभी-कभी पूरा झूठ परोस रहे हैं!

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1 comment:

  1. व्यवसायिकता की होड़ में यदि मीडिया ऐसे ही अपने कर्तव्यों से विमुख होती गई तो इसके मायने बदलने में तनिक भी देर नहीं लगेगी। वैसे भी विश्वास कमाने में वक्त लग जाते हैं, पर अविश्वास में तनिक देर नहीं लगती। हालांकि चैनलों ने हद पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहां अंधविश्वास तक को बढ़ावा देने में विभिन्न कार्यक्रमों को घंटो चलाने में उन्हें हिचक महसूस नहीं होती, वहां बारिश से होनेवाली झूठी बदहाली कोई बहुत बड़ी बात नहीं मानी जाए। खुद को जिन्दा रखने की बजाय अगर उद्देश्य को खयाल रखे तो यह ज्यादा अहम होगा।

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