हे दुनिया की महान आत्माओं...संभल जाओ....!!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
मेरी गुजरी हुई दुनिया के बीते हुए दोस्तों.....मैं तो तुम्हारी दुनिया में अपने दिन जीकर आ चूका हूँ....और अब अपने भूतलोक में बड़े मज़े में अपने नए भूत दोस्तों के साथ अपनी भूतिया जिन्दगी बिता रहा हूँ....मगर धरती पर बिताये हुए दिन अब भी बहुत याद आते हैं कसम से.....!!अपने मानवीय रूप में जीए गए दिनों में मैंने आप सबकी तरह ही बहुत उधम मचाया था....और वही सब करता था जो आप सब आज कर रहे हो....और इसी का सिला यह है कि धरती अपनी समूची अस्मिता खोती जा रही.... अपने वातावरण से बिलकुल मरहूम होती जा रही है....इसके पेड़-पौधे-नदी-जंगल-तालाब-पहाड़-मौसम और वे तमाम चीज़ें जिनसे हमारा जीवन सुन्दर-प्यारा-रंगीला और सुकुनदायक बनता है उन्हें हम सबने पागलों की तरह ऐसा इस्तेमाल कर डाला,कि ये सारी नेमतें धरती से समय से पूर्व ही नष्ट हो चली हैं,यहाँ तक कि इसके तरह तरह के जीवनदायक मौसम जो हमें आनंद प्रदान करते थे....आज हमें तनाव प्रदान कर रहे हैं.....हम सबने अमीर-अमीर और अमीर बनने के लालच में धरती के समूचे संसाधनों को भुक्खड़ों की तरह गपचा डाला....और बड़े-और बड़े-और बड़े होने के अहंकार को पुष्ट करने के लिए हम सब प्रकार के संसाधनों को यूँ गप्प करते चले गए जैसे कि किसी और को इन सब चीज़ों की कोई आवश्यकता ही नहीं....अपनी ताकत से हर ताकतवर ज्यादा से ज्यादा संसाधन हजम करता गया....इसके एवज में कम ताकतवर इंसान इसका हर्जाना भरता गया.....एक अमीर की अमीरी के पीछे हज़ारों गरीब की गरीबी बढती गयी.....!!
एक ही शरीर....एक ही चेतना....एक ही सृष्टि के सबसे होनहार माने जाने वाले जीव ने अपने जीवन को सहज बनाने की खातिर बाकी हर किसी का जीवन जीना दूभर कर दिया...इतना ही नहीं अन्य मानवेत्तर जीवों की सभी प्रजातियों को भी अपने पागलपन का शिकार बनता गया....हर एक जीव-सजीव-निर्जीव इसके अंतहीन लालच का शिकार बन अकाल काल-कलवित होता गया....सभी चीज़ें एक-एक कर नष्ट होती गयी....होती गयी....होती गयी....धरती रंगों से....या कि जीवन से रंगहीन होती चली गयी....और आज....??....आज हालत यह बन चुकी है कि खुद मानव को को अपना जीवन जी पाना दूभर लगने लगा है...क्योंकि मानव की बनायी हुई हर एक वस्तु से मानव का जीवन देखने में संवरता ही दीखता है....मगर दरअसल उसका जीवन पल-प्रतिपल ख़त्म होता जा रहा है....आदमी के जीने की गति को तेज करने वाले तमाम साधनों से धरती के मरने की गति उससे भी तेजी से बढती जा रही है....अब तो ऐसा लगने लगा है कि धरती की जिन्दगी सौ-पचास वर्ष भी नहीं बची है......!!उससे पहले ही यह ख़त्म हो जायेगी....अपने संग अंतहीन प्राणों की जान लेकर.....!!
मेरी गुजरी हुई दुनिया के वर्तमान प्यारे-प्यारे दोस्तों.....मैं तो अब मर चूका हूँ....इसलिए मैं इस धरती के लिए सिर्फ दुआ ही कर सकता हूँ....!!लेकिन दवा करना तो तुम जिन्दा इंसानों के हाथ में ही है....!!क्या अब भी तुम अपना लालच कम करने को तैयार हो....??क्या तुम्हारा जीवन सिर्फ तुम्हारे पेट की भूख को शांत करके नहीं जीया जा सकता....??क्या ऊँचे-ऊँचे ख्वाब देखना और उन्हें पूरा करने के लिए पागलपन की इन्तेहाँ तक चले जाना और सबका जीवन जीवन मुहाल कर देना ही मानव जीवन का ध्येय है......??क्या रसूख-अहंकार-और कथित बड़प्पन की चाह ही मानवीयता की निशानी है....??
धरती की हे तमाम महान आत्माओं तुम्हारे जीने के इन्ही तथाकथित मकसदों की वजह से तुम जीवन के इस विनाशक मोड़ पर आन पहुंचे हो और अगरचे अब भी यही सब धत्त्करम करते रहे तो याद रखो कि जल्द ही तुम सब ख़त्म हो जाने वाले हो....ये सही है है कि मरना तो सबको ही है मगर जिस तरह से जिस दिशा में जाकर और जिस-जिस तरह के करम करके तुम मरने को तत्पर हो वह शर्मनाक ही नहीं बल्कि निंदनीय भी है....क्या ये बातें तुम तक पहुँच रही हैं....क्या ये बातें तुम सब समझ पा रहे हो....क्या सचमुच तुम्हारे पास वह समझ है जिसके कारण तुम अपने-आप को सृष्टि के बाकी जीवों से महान और बड़ा साबित किये हुए हो ....हालाँकि किसी और ने ये उपाधियाँ तुम्हें नहीं दी हैं बल्कि तुमने खुद ही खुद को दुनिया का खुदा घोषित किया हुआ है यह बात तो खुद में ही बहुत बड़ा मज़ाक है कि कोई खुद ही खुद को सबसे बड़ा-सबसे तेज़-सबसे आगे घोषित कर दे......खैर ये तो दूसरी बात हुई....तुम्हारे लिए अहम् बात अब यही है कि कि अभी तुरत से ही तुम सब संभल जाओ....नेकनीयत बन जाओ....."आदमी" हो जाओ.....क्यूंकि अपनी जिस संतान के लिए तुम जीवन जीते हो....उस संतान के बारे में ही ज़रा सोच लो तो समझ सकोगे कि जो धरती तुम अपने बाद छोड़ कर जाने वाले हो वह जीने के लिए नहीं बल्कि मरने के लिए है....
Tuesday, March 30, 2010
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