मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
मेरे प्यारे-प्यारे-प्यारे-प्यारे और बेहद प्यारे दोस्तों.........
आप सबको इस भूतनाथ का बेहद ह्रदय भरा प्रेम.........दोस्तों पिछले समय में मुझे मिले कईयों आमंत्रणों में में मैंने कुछ आमंत्रणों को स्वीकार कर अनेक ब्लॉग में लिख रहा था.....बेशक एक ही आलेख हरेक ब्लॉग में होता था....आज अपनी एक ब्लागर मित्र की आज्ञा या यूँ कहूँ कि एक प्यारी-सी राय मान कर अपने को आज से सिर्फ़ एकाध ब्लाग में सीमित किए दे रहा हूँ...ये ब्लॉग कम्युनिटी ब्लोगों में "कबीरा खड़ा बाज़ार में","रांची-हल्ला" और मेरा ख़ुद का एक मात्र निजी ब्लॉग "बात पुरानी है" तक ही सीमित रहेंगे....!!
बाकी ब्लॉगों के सम्पादकों से मेरा अनुरोध हैं....कि मेरा यह अनुरोध शीघ्रता-पूर्वक स्वीकारते हुए मुझे तुंरत अपने ब्लॉगों से हटा दें.....इतनी जगहों पर एक आलेख भी चस्पां कर पाने में मैं ख़ुद को असमर्थ पाता हूँ....हाँ,इतने दिनों तक मुझे आदर और प्रेम देने के लिए मैं तमाम सम्पादकों का आभारी हूँ....आगे के लिए मुझे क्षमा किया जाए....भूतनाथ अब ख़ास तौर पर "बात पुरानी है !!" पर ही पाया जाएगा.....वैसे भी भूतों के लिए पुराना होकर "गया-बीता" हो जन ही उचित होता है.....तो दोस्तों आप सबको मेरे प्रेम के साथ ऊपर बताये गए ब्लॉगों से मेरी विदा.....एक स्नेहिल ह्रदय आत्मा........भूतनाथ
हरकीरत जी आपकी इस प्रेम भरी राय के लिए मैं आपका भी शुक्रिया अदा करता हूँ....दरअसल मैं ख़ुद भी यही करना चाह रहा था....मगर कुछ प्रेमियों के प्रेम के कारण ऐसा कर नहीं पा रहा था....आज आपकी आज्ञा से ये मैं कर रहा हूँ.....................आपको भी धन्यवाद......!!
एक बात आपसे और कहूँ....अभी मुझे भूतनाथ ही रहने दें.....इसके पीछे कोई बात है.....जो मैं बाद में सबको बता पाउँगा.....आज आखिरी बार मैं सभी ब्लॉगों पर दिखायी दूंगा.....!!कल से सिर्फ़ अपने ब्लाग एवं दो कम्युनिटी ब्लॉगों पर ही रहूंगा.....मुझसे कोई गलती हुई हो तो मैं तहे-दिल से खेद प्रकट करता हूँ....और सबसे क्षमा माँगता हूँ.....!!
Sunday, August 30, 2009
धन्यवाद प्यारे दोस्तों......!!
कृपया मुझे इस ब्लॉग से हटा दिया जाए.....क्योकि ज्यादा ब्लोगों से जुड़े रहना मुझे गैर ज़रूरी लगने लगा है....अबतक मुझे अपना प्रेम देने के लिए आप सबका बहुत-बहुत-बहुत आभार....!!
धन्यवाद प्यारे दोस्तों......!!
धन्यवाद प्यारे दोस्तों......!!
Saturday, August 22, 2009
ऐ भारत !! चल उठ ना मेरे यार !!
ऐ भारत !! चल उठ ना मेरे यार !!

"ए भारत ! उठ ना यार !! देख मैं तेरा लंगोटिया यार भूत बोल रहा हूँ.....!!यार मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....तुझे सुनाई नहीं देता क्या....??"
"यार तू आदमी है कि घनचक्कर !! मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....और तू है कि मेरी बात का जवाब ही नहीं देता...!!"
"अरे यार जवाब नहीं देता, मत दे !! मगर उठ तो जा मेरे यार !! कुछ तो बोल मेरे यार....!!"
"देख यार,हर बात की एक हद होती है...या तो तू सीधी तरह उठ जा,या फिर मैं चलता हूँ....तुझे उठाते-उठाते मैं तो थक गया यार....!!"
"हाँ,देख मेरे चलने का उपक्रम करते ही कैसा करवट लेने लगा है तू....अबे तू सीधी तरह क्यूँ नहीं उठ जाता है मेरे यार....बरसों से मैं तुझे जगा रहा हूँ....सदियों से मेरे और भी दोस्त तुझे उठाते-उठाते खुद ही उठ गए....!!...मगर तू है कि तुझ पर जैसे कोई असर ही नहीं होता.....क्यों बे तूने ये ऐसी-कैसी मगरमच्छ की खाल पायी है....??"
"मेरे दोस्त !! तुझसे बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है,इसीलिए तो बार-बार तेरे पास आ जाता हूँ मैं....और तू है कि इतना भाव देता है कि गुस्से से मेरी कनपटी तमतमा जाती हैं..देख मेरे जैसा प्रेमी तुझे कहीं नहीं मिलने वाला,और ज्यादा भाव मारेगा ना तो मुझे भी खो बैठेगा तू....!!"
"अरे...!! ये क्या....!! तेरी तो आखें डबडबा आयीं हैं....!! अरे यार,क्या हुआ तुझे....??अरे कम-से-कम मुझे तो कुछ बता मेरे यार !!"
"ओ...!! तो ये बात है !! यार यह तो कब से ही जानता हूँ....मगर यार मेरा बस ही कहाँ चल पाता है तेरे परिवार पर....तेरी संतानों पर !!...कहने को मैं भी एक तरह से तेरी संतानों में से ही एक हूँ...इतना चाहता है तू मुझे...!! उसके बाद भी तेरे परिवार के विषय में...तेरी पारिवारिक समस्याओं के विषय में कुछ कर ही नहीं पाता मैं...यार मैं क्या भी क्या करूँ, तेरे तमाम बच्चे इतने ज्यादा उच्च-श्रंखल हैं कि मेरा तनिक भी बस उनपर नहीं चल पाता...बल्कि वो मुझसे ऐसे किनाराकसी करते हैं कि जैसे मुझे पहचानते ही नहीं..जैसे मैं उनका कोई नहीं !!"
"क्या कहा,मैं अपनी पूरी ताकत से चेष्टा नहीं करता....??नहीं मेरे यार पूरी कोशिश करता हूँ....अब किसी से लड़-झगड़ थोडी ना सकता हूँ....अगर ऐसा करूँ तो मेरे दिन-रात...और यह सारी जिंदगी लड़ने-झगड़ने में ही ख़त्म हो जाये....मैं क्या करूँ यार...तेरे बच्चे ही बड़े अभिमानी,चालक,धूर्त,मक्कार,लालची और व्यभिचारी है...!!"
"नहीं यार !! मैं तेरे बच्चों को धिक्कार नहीं रहा...तेरा दोस्त हूँ मैं...तुझे वस्तु-स्थिति से मैं ही अवगत नहीं कराउंगा तो भला कौन कराएगा...??"
"देख !! इसमें ऐसा कोई क्रोधित होने की बात भी नहीं है...अपने परिवार के बारे में ऐसा कुछ सुनकर सभी को कष्ट होता है....वैसे यार मैं तेरे गुस्से का तनिक भी बुरा नहीं मानता मेरे यार...!! मैं तो तेरा प्रेमी हूँ और इस जन्म की आखिरी सांस तक तुझ से चिपका रहूंगा.....बल्कि बार-बार तेरे घर में ही जन्म लूँगा....!!
"हाँ एक बात और....वो यह कि मेरा तुझसे यह वादा है कि मैं कभी किसी जन्म में भी असल में तो क्या, सपने में भी तेरा मान-मर्दन करने या तेरी धन-संपत्ति लूटने,या तेरे बच्चों को आपस में लड़ाने,या तेरी बच्चियों के साथ व्यभिचार करने, या किसी भी रूप में तुझे लूटने-खसोटने के व्यापार या उपक्रम में नहीं लगूंगा....!!"
"नहीं यार मैं झूठ नहीं बोलता....और यह बात तू अच्छी तरह जानता भी है....ये अलग बात है कि मैं ऐसा कुछ कर नहीं पा रहा कि तू मुझपर गर्व कर सके....या ऐसा कुछ नहीं पा रहा कि तेरा मनोबल बढे....और तू पहले की तरह सोने-चांदी से लहलहा उठे...तू फिर दूध भरी नदियों से लबालब हो सके....तू फिर ऐसा इक पेड़ हो जाए...जिसकी हर टहनी पर सोने की चिडिया फुर्र-फुर्र करती बोलती-बतिया सके....!!"
"हाँ यार, तू ठीक कह रहा है.....अब तेरी पहली चिंता यह नहीं है, बल्कि यह है कि कैसे तेरी हर संतान को भोजन नसीब हो सके...कैसे तेरा हर बच्चा सुखपूर्वक जीवन-यापन कर सके....यार मेरे मैं जब भी तुझे ऐसा चिंतित देखता हूँ तो मेरी भी आँखें भर-भर आती हैं....मगर धन-बल से मैं इतना समर्थ ही कहाँ कि तेरी समस्त संतानों को यह सब प्रदान कर पाऊं....फिर भी मेरे यार, मुझसे जो भी बन पड़ता है...अवश्य करता हूँ...सच यार....भगवान कसम !!"
"देख हर जगह ऐसा होता है...और तू भी जानता है कि पाँचों उंगलियाँ बराबर तो नहीं ही होती....!!"
"हाँ यार...!! इतना अधिक फर्क कि अरबों बच्चे तो भूखे मरे...और कुछेक बच्चे इतना-इतना डकार जाएँ कि उनको हगने की भी जगह ना मिले....!!...बात तो तेरी एकदम दुरुस्त है... लेकिन कोई इस बारे में क्या कर सकता है....बता ही तो सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा...और कोई हजारों-लाखों-करोडों-अरबों बार कहने के बावजूद ना माने तो...तो फिर कैसे क्या हो....कैसे यह सब कुछ बदले...कैसे यह सब ठीक हो....और कैसे तू सही तरह से हंस भी पाए....!!"
"हाँ यार तेरी बात बिलकुल सच्ची है, बल्कि सोलह तो क्या बीस आना खरी है कि ये जो बच्चे हैं...ये इस बात पर तो सदा गर्व करते हैं कि किसी जमाने में तू कितनी बड़ी कद-काठी का था...और उनके माँ-बाप के माँ-बाप....यानि कि उनके समस्त पूर्वज तुझपर अपने जीवन से बहुत-बहुत अधिक फक्र महसूस करते थे....बहुत अभिमान महसूस करते थे...मगर पता नहीं इन्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि इनके पूर्वज भी तो अपने माँ-बाप यानि कि तेरे लिए...तेरा भाल ऊपर उठाने के कितना-कितना यत्न करते थे....कितना खटते थे...कितना व्याकुल रहते थे इस बात के लिए कि उनकी किसी गलती से तेरा सर नत-मस्तक ना हो जाए....!!"
"बेशक तू कुछ नहीं कह पाता यह सब मगर मैं तेरी बात समझता हूँ मेरे यार,मगर मैं सब समझता हूँ....तेरी हालत मुझसे कभी छिप नहीं पाती....और मैं तुझे यह वचन देता हूँ....कि आने वाले दिनों में मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा....अवश्य-अवश्य-अवश्य करूंगा....करता तो मैं अब भी हूँ मेरे यार, भले सार्वजनिक-या सामाजिक रूप से या ढिंढोरा पीट-पीट कर नहीं,मगर ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि मैंने तेरे बारे में कुछ भी बुरा सोचा हो...या तुझसे जान-बूझकर बुरा किया हो....या ऐसा कुछ भी करने की चेष्टा की हो जिससे मुझे तो फायदा और तुझे हानि होती हो....!!!!"
"अच्छा यार ,अब चलता हूँ मैं !! बच्चों को स्कूल से लेकर आना है ,लेकिन मैंने तुझसे जो वादा किया है ,वो मैं अवश्य निभाउंगा....और हाँ मैं यह भी कोशिश करूँगा कि तेरे इस आँगन में तेरे सारे बच्चों को एक साथ खडा कर दूँ कि तेरी सारी सतानें ना सिर्फ़ बिना लड़े-झगडे एक साथ रह सकें...बल्कि वो एक दूसरे के दुःख दर्द में शामिल भी हो सकें,एक समाज में रहते हुए कोई कहीं भी भूखा ना मर सके !!"
"एक काम मगर तो किसी भी तरह तू मेरा भी कर दे ना....वो यह कि तेरी संतानें तुझसे कम-से-कम इतना तो प्रेम करें कि उन्हें तेरी इज्जत अपनी इज्जत लगे....तेरा दर्द अपना दर्द लगे....और तेरी सारी संतानें उन्हें अपने ही सगे भाई-बहन....!! बस इतना भर हो जाए तो मेरा काम आसान हो जाएगा...!!"
"बाकि तू और मैं चाहे कुछ कर सके या ना कर सके...मगर मुझे यह उम्मीद है कि आखिरकार ये सारे लोग एक दिन ठोकर खाकर संभल जायेंगे....और सच बताऊँ मेरे यार....ठोकर खाकर भी ना संभले तो किधर जायेंगे....
जाते जाते एक शेर कहीं सुना था उसे तुझे सुना जाता हूँ...
मैंने तुझसे चाँद-सितारे कब मांगे....
रौशन दिल बेदाग नज़र दे या अल्लाह !!" अब चलता हूँ मेरे यार मेरे प्यार !!"
Saturday, August 15, 2009
धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
सच कहूँ तो इस्लाम क्या,अपितु सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं,मगर इस्लाम के अनुयायी-मौलवी आदि किसी भी टिप्स को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं....दरअसल आदमी का अंहकार कभी आदमी को आदमी नहीं बना रहने देता !!
वह अपने ही दुर्दमनीय हाथों का शिकार हो जाता है,इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है....जैसा कि हर धर्मों में होता आया है...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं....जैसा कि प्रकृति का अपरिवर्तन-शील नियम ही है...सतत परिवर्तन-शीलता...अगर इंसान इसको ना माने तो पीछे मिट चुकी अनेकानेक चीज़ों और जातियों की तरह उसे भी मिट जाना है......इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना....और परमेश्वर की कल्पना उसके इसी ध्येय का एक माध्यम !! परमेश्वर है भी तो आपको उसके एक अंश होकर ही जीना है....और उसके अंश की तरह जीने के लिए अपनी ही रूढ़ पड़ चुकी मान्यताओं की बलिवेदी पर इंसान को मौत अपनाने पर विवश कर देना,यह किसी भी धर्म का ना तो कभी उद्देश्य था...और ना कभी हो भी सकता है....अल्लाह हो या भगवान्....इंसान के जीवन में इनकी महत्ता इंसान की सोच को अपार विस्तार प्रदान करने की होनी चाहिए....बेशक दुनिया में कईयों तरह के धर्म गढ़ लिए जाएँ....मगर धर्म के पागलपन की जगह इंसान होने का पागलपन,एक सच्चे इंसान होने का पागलपन अगर इंसान पर तारी हो सके...अगर अल्लाह या भगवान् के बन्दे अल्लाह और भगवान् के अन्य बन्दों को हंसा सके....उनका दुःख दूर करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना सकें....तब तो इंसान होने का कोई अर्थ है....इंसान होने में कोई गरिमा है....और भगवान या अल्लाह के वजूद की कोई सार्थकता......!!मगर यह क्या कि अल्लाह या भगवान् ने आपको भेजा तो है जीने और दूसरों को जीने देने के लिए....और आप यहाँ आकर जीवन को मेटते ही जा रहे हो आप शब्दों की जुगाली में जीवन की गरिमा को नष्ट किये जा रहे हो.... कोई गेरुआ...कोई हरा झंडा उठाये बस एक दुसरे को भयभीत किये जा रहा है....यह सब क्या है....??....क्या यही है जीवन.....आधी आबादी यानि स्त्री जात को आप उसका यथोचित सम्मान से वंचित ही नहीं कर रहे....बल्कि उसे कदम-कदम पर अपमानित करते उसे मौत सरीखा जीवन जीने पर विवश किये हुए हो....यह सब क्या है....तरह-तरह की थोथी मान्यताओं आड़ लेकर इंसान के जीवन को तरह-तरह से प्रताडित किये जा रहे हो..यह सब क्या है...??...अगर सच में ही तुम सबके जीवन का उद्देश्य प्रेम ही है,तो वह सिर्फ तुम्हारे पुराणों और कुरानों में शब्दों तक ही सीमित है क्या....वह तुम्हारे जीवन में कब तलक उतरेगा....तुम्हारा जीवन कुरानानुकुल-पूरानानुकुल कब तलक संभव होगा....तुम्हारे मौलवी और पंडित कब एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे.....??तुम्हारे जीवन में कब मानवता का उजाला होगा....??जिसे तुम वाकई प्रेम कहते हो,प्रेम समझते हो,वह जैसा भी हो,वह कब तुम्हारे जीवन को असीम ब्रहामान्दनीय-ब्रहमांडनीय चेतना से पुलकित करेगा....??तुम कब मनुष्य जीवन में अपने मानव होने का यथेष्ट योगदान दोगे....??......कुरान और पुराण के समुचित अर्थ को कब अकथनीय विस्तार दोगे....??जीवन एक बहता हुआ दरिया है दोस्तों....धरम अगर तरह-तरह के दरियायों के नाम हैं....तो इंसान होना इक विराट समुद्र....अगर तुम यह समुद्र हो सको तो सारे धरम तुम्हारे भीतर ही सिमट जायेंगे....और अगर यूँ ही दरिया की तरह उफनते रहे तो समूची मनुष्यता तुम्हारी हिंसा की बाढ़ में विनष्ट हो जायेगी....तुम्हें क्या होना है....यह अब तुम्ही तय करो....ओ मनुष्यों.....यह बात इक भूत तुम्हें तार-तार रोता हुआ बोल रहा रहा है....बोले ही जा रहा है....बोलता ही रहेगा....!!!!
सच कहूँ तो इस्लाम क्या,अपितु सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं,मगर इस्लाम के अनुयायी-मौलवी आदि किसी भी टिप्स को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं....दरअसल आदमी का अंहकार कभी आदमी को आदमी नहीं बना रहने देता !!
वह अपने ही दुर्दमनीय हाथों का शिकार हो जाता है,इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है....जैसा कि हर धर्मों में होता आया है...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं....जैसा कि प्रकृति का अपरिवर्तन-शील नियम ही है...सतत परिवर्तन-शीलता...अगर इंसान इसको ना माने तो पीछे मिट चुकी अनेकानेक चीज़ों और जातियों की तरह उसे भी मिट जाना है......इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना....और परमेश्वर की कल्पना उसके इसी ध्येय का एक माध्यम !! परमेश्वर है भी तो आपको उसके एक अंश होकर ही जीना है....और उसके अंश की तरह जीने के लिए अपनी ही रूढ़ पड़ चुकी मान्यताओं की बलिवेदी पर इंसान को मौत अपनाने पर विवश कर देना,यह किसी भी धर्म का ना तो कभी उद्देश्य था...और ना कभी हो भी सकता है....अल्लाह हो या भगवान्....इंसान के जीवन में इनकी महत्ता इंसान की सोच को अपार विस्तार प्रदान करने की होनी चाहिए....बेशक दुनिया में कईयों तरह के धर्म गढ़ लिए जाएँ....मगर धर्म के पागलपन की जगह इंसान होने का पागलपन,एक सच्चे इंसान होने का पागलपन अगर इंसान पर तारी हो सके...अगर अल्लाह या भगवान् के बन्दे अल्लाह और भगवान् के अन्य बन्दों को हंसा सके....उनका दुःख दूर करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना सकें....तब तो इंसान होने का कोई अर्थ है....इंसान होने में कोई गरिमा है....और भगवान या अल्लाह के वजूद की कोई सार्थकता......!!मगर यह क्या कि अल्लाह या भगवान् ने आपको भेजा तो है जीने और दूसरों को जीने देने के लिए....और आप यहाँ आकर जीवन को मेटते ही जा रहे हो आप शब्दों की जुगाली में जीवन की गरिमा को नष्ट किये जा रहे हो.... कोई गेरुआ...कोई हरा झंडा उठाये बस एक दुसरे को भयभीत किये जा रहा है....यह सब क्या है....??....क्या यही है जीवन.....आधी आबादी यानि स्त्री जात को आप उसका यथोचित सम्मान से वंचित ही नहीं कर रहे....बल्कि उसे कदम-कदम पर अपमानित करते उसे मौत सरीखा जीवन जीने पर विवश किये हुए हो....यह सब क्या है....तरह-तरह की थोथी मान्यताओं आड़ लेकर इंसान के जीवन को तरह-तरह से प्रताडित किये जा रहे हो..यह सब क्या है...??...अगर सच में ही तुम सबके जीवन का उद्देश्य प्रेम ही है,तो वह सिर्फ तुम्हारे पुराणों और कुरानों में शब्दों तक ही सीमित है क्या....वह तुम्हारे जीवन में कब तलक उतरेगा....तुम्हारा जीवन कुरानानुकुल-पूरानानुकुल कब तलक संभव होगा....तुम्हारे मौलवी और पंडित कब एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे.....??तुम्हारे जीवन में कब मानवता का उजाला होगा....??जिसे तुम वाकई प्रेम कहते हो,प्रेम समझते हो,वह जैसा भी हो,वह कब तुम्हारे जीवन को असीम ब्रहामान्दनीय-ब्रहमांडनीय चेतना से पुलकित करेगा....??तुम कब मनुष्य जीवन में अपने मानव होने का यथेष्ट योगदान दोगे....??......कुरान और पुराण के समुचित अर्थ को कब अकथनीय विस्तार दोगे....??जीवन एक बहता हुआ दरिया है दोस्तों....धरम अगर तरह-तरह के दरियायों के नाम हैं....तो इंसान होना इक विराट समुद्र....अगर तुम यह समुद्र हो सको तो सारे धरम तुम्हारे भीतर ही सिमट जायेंगे....और अगर यूँ ही दरिया की तरह उफनते रहे तो समूची मनुष्यता तुम्हारी हिंसा की बाढ़ में विनष्ट हो जायेगी....तुम्हें क्या होना है....यह अब तुम्ही तय करो....ओ मनुष्यों.....यह बात इक भूत तुम्हें तार-तार रोता हुआ बोल रहा रहा है....बोले ही जा रहा है....बोलता ही रहेगा....!!!!
Friday, August 14, 2009
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!

क्या हुआ जो मुहँ में घास है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो चोरों के सर पर ताज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो गरीबों के हिस्से में कोढ़ ओर खाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो अब हमें देशद्रोहियों पर नाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो सोने के दामों में बिक रहा अनाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो आधे देश में आतंकवादियों का राज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या जो कदम-कदम पे स्त्री की लुट रही लाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर आम आदमी हो रहा बर्बाद है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर शासन से सारी जनता नाराज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो देश के अंजाम का बहुत बुरा आगाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
इस लोकतंत्र में हर तरफ से आ रही गालियों की आवाज़ है
बस इसी तरह से मेरा यह देश आजाद है....!!!!
Thursday, August 6, 2009
ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश
ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश
पता नहीं क्यों इस देश की तमाम सरकारें यही समझती हैं कि उसके और उसके कर्ता-धर्ताओं के अलावे तमाम भारतवासी “चूतिये”हैं !!{दरअसल यहाँ मुझे इससे खराब कोई शब्द नहीं मिल रहा,मैं इससे भी ज्यादा गंदे शब्द का इस्तेमाल करना चाहता हूँ,इसके लिए पाठक मुझे माफ़ करें !!}
इस देश के तमाम खेवनहारों में यह कमी अनिवार्य रूप से पाई जाती है,कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों की अनदेखी ही करते हैं, गोया जनता मनुष्य ना होकर जानवर हों,और उनके मुख से किसी भी अर्थ वाली आवाजें नहीं उठनी चाहिए!!और अगर जो उठीं,तो जनता को गोलियों से भूने जाने के तैयार रहना चाहिए !!यह सब देश के तारणहर्ताओं की चरमरा चुकी सोच का परिचायक है,यहाँ यह ध्यान रख लेना चाहिए कि चरमरा चुकी चीज़ों की या तो मरम्मत की जाती है,या फिर उन्हें बदल दिया जाता है,यह नहीं कि ऐसी राय देने वालों की जान ही ले ली जाये,मगर जैसा कि इस देश में जो ना हो जाए,वो कम है,सो हमें इस देश की तमाम सरकारों के द्वारा यही सब देखने को मिलता है !!
मणिपुर की राजधानी इम्फाल में कल यही हुआ,पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में एक नागरिक की अमानुषिक हत्या के बाद हुए जनांदोलन और बंदी के आखरी दिन के अंत में सुरक्षा-बलों की गोली-बारी के पश्चात इम्फाल में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया!!यहाँ यह विदित हो कि उससे पहले आत्मसमर्पण कर चुके एक प्रदर्शनकारी युवक चोंग्खाम संजीत को सुरक्षा-बलों द्वारा सड़क पर घसीटकर एक मॉल में ले जाया गया था,जहां फिर उसकी निर्ममता-पूर्वक हत्या कर दी गयी थी!!इम्फाल में “अपुंगा लूप “नामक संगठन द्वारा इसी फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ प्रदर्शन बुलाया गया था.मगर जैसा कि हम जानते हैं कि भारत नाम के इस देश की तमाम राष्ट्रीय और राज्य-सरकारें पहले किसी भी जनांदोलन को बेरहमी और भीषणता से कुचलती हैं,मगर जब इससे स्थितियां उनके नियंत्रण के और भी ज्यादा बाहर हो जाती हैं,तो संबद्द संगठनों को बातचीत का प्रस्ताव भेजती हैं,मगर ज्यादातर तो वह बातचीत की इच्छुक ही नहीं दिखती क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों को उसका “चुतियापा”,बेवजह का क्रंदन या अपने अंहकार पर चोट समझती है.और इसी का परिणाम है,देश में जगह-जगह पर हो रहे तरह-तरह के मुद्दों पर जनव्यापी आन्दोलन-प्रदर्शन या आखिरकार हिंसा !!
हो सकता है कि इनमें से बहुत सारे आन्दोलन फर्जी ही हों मगर अधिकाँश तो सच्चाईयों पर या तथ्यों पर आधारित ही होते हैं,जिनकी सरकारें अनदेखी ही करती जाती हैं,और समय के साथ इन प्रदर्शनों या आन्दोलनों का रूप कुरूप या वीभत्स होता चला जाता है,वर्तमान में मणिपुर इसकी जीवंत मिसाल है!!ज्ञातव्य हो कि यह वही मणिपुर है जहां कुछ ही समय बीता जब यहाँ की महिलायें भारत के सुरक्षा-बलों के अमानुषिकता-बर्बरता और मणिपुरी महिलाओं पर उनके यौनिक दुर्व्यवहारों के खिलाफ पूर्ण-नग्न होकर सड़क पर उतर आयीं थीं….!!क्या भारत जैसे पर्मप्रवादी देश में ऐसे दृश्य की कल्पना भी कर सकते है......?? यदि ऐसा वहां की महिलाओं ने किया तो आप खुद ही विचार करें कि वहां हमारे सुरक्षा बलों या कमांडों ने मणिपुरी महिलाओं के साथ ऐसा क्या सलूक किया होगा?? किसी भी घृणापूर्ण सुलूक के बगैर कहीं किसी देश या समाज की महिलायें ऐसा कठोर और शर्मनाक लगने वाला कदम नहीं उठा सकतीं…..!!मगर ऐसा लगता हैं कि हमारी सरकारों को सत्ता के रुतबे और ताकत के मद में किसी भी बात की,चाहे वह बात कितनी ही लोमहर्षक क्यों ना हो,कोई सुध ही नहीं रहती और यह बात यहाँ का अज्ञानी-से-अज्ञानी गंवार भी सरकार को बता या चेता सकता है!!इसका दूसरा अर्थ यह भी तो है हमारी सरकारें इनसे भी ज्यादा गंवार है{असभ्य और बेगैरत तो खैर वो पहले से ही हैं....!!}
जब सरकारों के कानों पर कोई जूं नहीं रेंगती या जब सरकारें कान में रुई डाल कर चैन की नींद सोई रहती हैं,उस वक्त भी,जब आम नागरिक में सरकारों के“चुतियापे” की वजह से भयंकर गुस्सा खदबदाता रहता है,तब सडकों पर वो सब होता है,जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और सरकारें तो कतई नहीं….!! ......मणिपुर, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ ,कश्मीर,बिहार,महाराष्ट्र,तेलंगाना,नदीग्राम……..!!.....कितने-कितने नाम लिए जाएँ.....कितने उदहारण गिनाएं जाएँ….!!अगर इस सबको गिनने या चेताने का कोई अर्थ ही ना निकले ……!!यदि ऐसा ही है तो आने वाले दिनों जनहित का कोई भी मुद्दा आन्दोलन किये बिना संसद तक पहुँचाया ही ना जा सके…..हिंसा किये बगैर कोई मुद्दा सुलझाया ही ना सके…..!! और दोस्तों मेरा विश्वास कीजिये कि यदि ऐसा हुआ तो सरकारें भी जनता के अतिशय क्रोध का शिकार बन जाएँगी……तब संसद भी नहीं रहेगी…..सच…..!!!!!
bhootnath गुरुवार, अगस्त 06, 2009
पता नहीं क्यों इस देश की तमाम सरकारें यही समझती हैं कि उसके और उसके कर्ता-धर्ताओं के अलावे तमाम भारतवासी “चूतिये”हैं !!{दरअसल यहाँ मुझे इससे खराब कोई शब्द नहीं मिल रहा,मैं इससे भी ज्यादा गंदे शब्द का इस्तेमाल करना चाहता हूँ,इसके लिए पाठक मुझे माफ़ करें !!}
इस देश के तमाम खेवनहारों में यह कमी अनिवार्य रूप से पाई जाती है,कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों की अनदेखी ही करते हैं, गोया जनता मनुष्य ना होकर जानवर हों,और उनके मुख से किसी भी अर्थ वाली आवाजें नहीं उठनी चाहिए!!और अगर जो उठीं,तो जनता को गोलियों से भूने जाने के तैयार रहना चाहिए !!यह सब देश के तारणहर्ताओं की चरमरा चुकी सोच का परिचायक है,यहाँ यह ध्यान रख लेना चाहिए कि चरमरा चुकी चीज़ों की या तो मरम्मत की जाती है,या फिर उन्हें बदल दिया जाता है,यह नहीं कि ऐसी राय देने वालों की जान ही ले ली जाये,मगर जैसा कि इस देश में जो ना हो जाए,वो कम है,सो हमें इस देश की तमाम सरकारों के द्वारा यही सब देखने को मिलता है !!
मणिपुर की राजधानी इम्फाल में कल यही हुआ,पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में एक नागरिक की अमानुषिक हत्या के बाद हुए जनांदोलन और बंदी के आखरी दिन के अंत में सुरक्षा-बलों की गोली-बारी के पश्चात इम्फाल में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया!!यहाँ यह विदित हो कि उससे पहले आत्मसमर्पण कर चुके एक प्रदर्शनकारी युवक चोंग्खाम संजीत को सुरक्षा-बलों द्वारा सड़क पर घसीटकर एक मॉल में ले जाया गया था,जहां फिर उसकी निर्ममता-पूर्वक हत्या कर दी गयी थी!!इम्फाल में “अपुंगा लूप “नामक संगठन द्वारा इसी फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ प्रदर्शन बुलाया गया था.मगर जैसा कि हम जानते हैं कि भारत नाम के इस देश की तमाम राष्ट्रीय और राज्य-सरकारें पहले किसी भी जनांदोलन को बेरहमी और भीषणता से कुचलती हैं,मगर जब इससे स्थितियां उनके नियंत्रण के और भी ज्यादा बाहर हो जाती हैं,तो संबद्द संगठनों को बातचीत का प्रस्ताव भेजती हैं,मगर ज्यादातर तो वह बातचीत की इच्छुक ही नहीं दिखती क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों को उसका “चुतियापा”,बेवजह का क्रंदन या अपने अंहकार पर चोट समझती है.और इसी का परिणाम है,देश में जगह-जगह पर हो रहे तरह-तरह के मुद्दों पर जनव्यापी आन्दोलन-प्रदर्शन या आखिरकार हिंसा !!
हो सकता है कि इनमें से बहुत सारे आन्दोलन फर्जी ही हों मगर अधिकाँश तो सच्चाईयों पर या तथ्यों पर आधारित ही होते हैं,जिनकी सरकारें अनदेखी ही करती जाती हैं,और समय के साथ इन प्रदर्शनों या आन्दोलनों का रूप कुरूप या वीभत्स होता चला जाता है,वर्तमान में मणिपुर इसकी जीवंत मिसाल है!!ज्ञातव्य हो कि यह वही मणिपुर है जहां कुछ ही समय बीता जब यहाँ की महिलायें भारत के सुरक्षा-बलों के अमानुषिकता-बर्बरता और मणिपुरी महिलाओं पर उनके यौनिक दुर्व्यवहारों के खिलाफ पूर्ण-नग्न होकर सड़क पर उतर आयीं थीं….!!क्या भारत जैसे पर्मप्रवादी देश में ऐसे दृश्य की कल्पना भी कर सकते है......?? यदि ऐसा वहां की महिलाओं ने किया तो आप खुद ही विचार करें कि वहां हमारे सुरक्षा बलों या कमांडों ने मणिपुरी महिलाओं के साथ ऐसा क्या सलूक किया होगा?? किसी भी घृणापूर्ण सुलूक के बगैर कहीं किसी देश या समाज की महिलायें ऐसा कठोर और शर्मनाक लगने वाला कदम नहीं उठा सकतीं…..!!मगर ऐसा लगता हैं कि हमारी सरकारों को सत्ता के रुतबे और ताकत के मद में किसी भी बात की,चाहे वह बात कितनी ही लोमहर्षक क्यों ना हो,कोई सुध ही नहीं रहती और यह बात यहाँ का अज्ञानी-से-अज्ञानी गंवार भी सरकार को बता या चेता सकता है!!इसका दूसरा अर्थ यह भी तो है हमारी सरकारें इनसे भी ज्यादा गंवार है{असभ्य और बेगैरत तो खैर वो पहले से ही हैं....!!}
जब सरकारों के कानों पर कोई जूं नहीं रेंगती या जब सरकारें कान में रुई डाल कर चैन की नींद सोई रहती हैं,उस वक्त भी,जब आम नागरिक में सरकारों के“चुतियापे” की वजह से भयंकर गुस्सा खदबदाता रहता है,तब सडकों पर वो सब होता है,जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और सरकारें तो कतई नहीं….!! ......मणिपुर, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ ,कश्मीर,बिहार,महाराष्ट्र,तेलंगाना,नदीग्राम……..!!.....कितने-कितने नाम लिए जाएँ.....कितने उदहारण गिनाएं जाएँ….!!अगर इस सबको गिनने या चेताने का कोई अर्थ ही ना निकले ……!!यदि ऐसा ही है तो आने वाले दिनों जनहित का कोई भी मुद्दा आन्दोलन किये बिना संसद तक पहुँचाया ही ना जा सके…..हिंसा किये बगैर कोई मुद्दा सुलझाया ही ना सके…..!! और दोस्तों मेरा विश्वास कीजिये कि यदि ऐसा हुआ तो सरकारें भी जनता के अतिशय क्रोध का शिकार बन जाएँगी……तब संसद भी नहीं रहेगी…..सच…..!!!!!
bhootnath गुरुवार, अगस्त 06, 2009
Tuesday, July 28, 2009
आईये दोस्तों !!करें देश की इज्ज़त की नीलामी....!!
आईये दोस्तों !!करें देश की इज्ज़त की नीलामी....!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!आईये ना प्लीज़ आप भी यहाँ,
हम आपकी भी नुमाईश कर देंगे!!
बेशक आपने खोले नहीं हों अपने कपड़े बाथरूम में भी कभी
लेकिन हम आपको यहाँ बिल्कुल नंगा कर देंगे!!
हम यहाँ सबका सामना सच से कराते हैं
बेशक इस सच से हम सबको अधमरा कर देंगे !!
नई लाइफ-स्टाइल में कुछ भी गोपनीय नहीं होता
हर कोई एक बार कम से कम अधनंगा तो होना ही चाहिए !!
और हर सच भले ही चाहे कितना ही कुरूप क्यूँ ना हो
उस भयावह कुरूपता को परदे पर उजागर क्यूँ नहीं होना चाहिए??
परदे पर कुरूपता सुंदर-वैभवशाली और परिपूर्ण लगती है!!
इसलिए हर कुरूपता को खोज-खोज कर हम इस परदे को भर देंगे !!
ओ भारत के तमाम भाई और बहनों
अब भी तुम सबमें कुछ तमीज-संस्कार और परम्परा यदि बाकी बची है
तो यहाँ आओ, इस तमीज की कमीज हम ही उतारते हैं!!
सभ्यता नाम की कोई चीज़ अगर आदमी में बाकी बच रही है,
उसे इन्हीं दिनों में ख़त्म होना होना है !!
ये बात बाबा"........"जी बता कर गए हैं !!
अरे भारत-वासियों,अब तो आप सच से मुकर मत जाना !!
और गली-गली से-हर नाली और पोखर से गंदे-से-गंदे
हर सच की बदबूदार सडांध को ढूँढ-ढूँढ कर इस मंच पर लाना !!
हम सच बेचते हैं,जी हाँ हम सच बेचते हैं!!
सच के साथ हम और भी बहुत कुछ बेचते हैं!!
ईमान-धरम की बात हमसे ना कीजै,
ये सब कुछ तो हम मज़ाक-मज़ाक में ही बेच देते हैं...!!
तो फिर साहिबान-कद्रदान-मेजबान-मेहमान !!
आज और अभी इस मंच पर आईये,
और हमसे मज़ाक का इक सिलसिला बनाईये,
और अपनी इज्ज़त के संग ख़ुद भी बिक जाईये!!
नोट-देश की इज्ज़त की नीलामी फ्री गिफ्ट के रूप में ले जाईये !!
Sunday, July 12, 2009
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कब यहाँ से वहाँ.....कब कहाँ से कहाँ ,
कितनी आवारा है ये मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कभी बनती सबा कभी बन जाती हवा ,
कितने रंगों भरी है मेरी ये जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कितनी आवारा है ये मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
कभी बनती सबा कभी बन जाती हवा ,
कितने रंगों भरी है मेरी ये जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
नाचती कूदती-चिडियों सी फूदती ,
चहचहाती-खिलखिलाती मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
याद बनकर कभी,आह बनकर कभी ,
टिसटिसाती है अकसर मेरी जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
जन्म से मौत तक,खिलौनों से ख़ाक तक
किस तरह बीत जाती है ये तन्हाँ जिंदगी !!
जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी-जिंदगी !!
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